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पूज्य स्वामी श्री व्यासानन्दजी महाराज

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जैसा नाम से ही विदित होता है आपका व्यास ज्ञान भक्ति वैराग्य के वृत को पाटने वाला है। संत शिरोमणि की श्रृखला मे आप मेरू सदृश्य है। संतमत की परम्परा में आपका अवतरण सन् 1967 र्इ. को ग्राम अलियावाढ़ जिला भागलपुर, बिहार राज्यान्तर्गत ब्राह्ममण परिवार में हुआ।

‘‘कुल पवित्रं जननी कृतार्था वसुन्धरा पूण्यवती चयेन:’’

आपके पिता श्री दशरथ झा व माता श्रीमती सावित्री देवी के पचं संतानों में आपका स्थान तृतीय है।

पूर्व जन्म के प्रबल संस्कार से आप बाल्यावस्था से ही प्रबल आध्यमित्क प्रवृत्ति से सम्पन्न थे। आपका शुद्ध व पवित्र मन सांसारिक लोगों के साथ ना लगकर वरन् साधु-संतों व योगियों के साथ ही तृप्त होता था।

मात्र बारह वर्ष की अवस्था में संतमत के मुर्धन्य संत श्री महर्षिं मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन लाभ आपको अपने ही ग्राम अलियाबाढ़ में हुआ।
तत्पश्चात् तीन वर्षों तक सत्संग व संत सेवा के परिणांमस्वरूप 15 वर्ष की अवस्था में संत श्री महर्षिं मेंहीं परमहंस जी महाराज द्वारा संतमत की पवित्र दीक्षा प्राप्त की । दीक्षोंपरांत कुछ सप्ताह के बाद ही परम तत्व की खोज में आपने गृह-त्याग कर दिया। चितिंत परिवार ने आपकी खोज-बीन कर पास के आश्रम से पुन : घर वापस ले गये, परतु 10 दिनों बाद ही सत्य की खोज में आप पुन : गृहत्याग कर संतमत के उच्च साधक श्रीधर बाबा के आश्रम चले गए जो घर से काफी दूर था। श्रीधर बाबा की देख-रेख में आप साधन क्रिया करने लगे। साधना करते हुए ही श्रीधर बाबा की प्रेरणा से गोस्वामी लक्ष्मीनाथ परमहंस संस्कृत कॉलेज से संस्कृत व अंन्य शिक्षा प्राप्त की । साधना की ऊचार्इयों की ओर अग्रसर पथ पर नादानुसधान व पूर्ण सन्यास की दीक्षा महर्षिं संतसेवी परमहस जी महाराज द्वारा सन् 1989 र्इ. में आपको प्राप्त हुर्इ। आप हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून व हिमालय की कन्दराओं मे कठोर साधना करते हुए संतमत के प्रचार-प्रसार में भी तन, मन व धन का योगदान देते रहे

आप द्वारा बिन्दु ध्यान व नादानुसंधान की दीक्षा व प्रायोगिक ध्यान शिविर हर वर्ष भारत के महत्ती तीर्थ स्थलों पर आयोजित किया जाता है आपके द्वारा आध्यात्मिक भागवत् आध्यात्मिक रामायण, शिवपुराण आदि पर अभूतपूर्व प्रवचन किया जाता है। संतमत की महत्ता व गरिमा को बरकारार रखते हुए गुरु जयंती परिनिर्वाण दिवस आदि धूम-धाम से मनाया जाता है। अपने तपोबल से प्राप्त अनुभूत ज्ञान से रचित विभिन्न पुस्तक आने वाली मानव पीढ़ी के लिए अवश्य ही अमूल्य वरदान साबित होगी। संतमत सत्संगियों के सुविधार्थ गुरु परम्परा को कायम रखते हुए आपने भारत वर्ष के जम्मू, हरिद्वार, देहरादून, मौरमंडी (पंजाब) मुरादाबाद (यु.पी.) बैगलौर मैसूर आदि स्थानों पर सत्संग मंदिर की स्थापना कर पूरे भारत वर्ष में ही संतमत के प्रचार को बढ़ाया है। आपकी अमूल्य पुस्तक ‘चल हंसा निज देश’ ने अमेरिका में अंग्रेजी भाषांतरण कर अंतर्राष्ट्रीय दर्जे की पुस्तक होने का गौरव प्राप्त किया है।

शास्त्रों में संतो के लिए युक्त परिभाषाओं व साधनाओं की पराकाष्ठा का दिव्य व जीवत उदाहरण की मूर्ति स्वामी श्री व्यासानन्द के चरणों में शत्-शत् नमन्

विश्व-स्तरीय संतमत सत्संग समिति (रजि.)