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संत चोखामल

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-श्री सरयु केशरी

तेरहवीं सदी में महाराष्ट्र में ‘चोखालाल’ नामक एक महान् सन्त हो गये है। महार जाति के ये सन्तपुरूष विट्ठलदेव के परम भक्त थे। ये संत नामदेव के शिष्य थे। पंढ़री की वारी करना वे अपना एकमेव धर्म समझते थे।

एक बार मंगलबेढा में जमीन से मिट्टी निकालने का कम चल रहा था और चोखोबा भी उस काम में जुट गये थे कि अकस्मात् उनके मन में विचार आया, मैं यहाँ दिन-रात मिट्टी निकालता जा रहा हूँ और मिट्टी के अलावा मुझे कुछ भी दिखार्इ नहीं दे रहा है। भगवान् की भी मुझे सुधि न रही’’। फिर अपने इष्टदेव की मोहिनी मूरत को अपने अन्तर्चक्षुओं के सामने लाकर वे उसे संबोधित कर बोले, ‘‘भगवन्। मैं इस काम में इतना मग्न हो गया कि मुझे तेरे रूप-स्वरूप की स्मृति ही न रही। लेकिन अब मुझे वारी की याद आ रही है, तेरे सुन्दर रूप की मुखाकृति बार-बार आँखों के सामने आती जा रही है। अगर मैं अपने काम में मग्न हो गया, तो फिर तुझे भूल जाऊँगा। मुझे तो तुझसे मिलने की आशा हर क्षण बढ़ती जा रही है। मुझसे अब रहा नहीं जाता। मुझे अब यहाँ से ले चल, ताकि जन्म-जन्म तक तेरी सेवा करने का मुझे सौभाग्य मिले।’’ और उन्होंने ‘विट्ठल-विट्ठल’ का नामोच्चार करना शुरू किया।
भगवान् ने अपने भक्त की आकुलता सुनी। अचानक नीचे की मिट्टी धँसने लगी तथा चोखोबा सहित अन्य लोग मिट्टी के नीचे दब गये और इस तरह भक्त की भगवान् से एकरूप होने की इच्छा पूरी हो गर्इ। लोगों ने जब इस दुर्घटना का समाचार सुना, तो हाहाकार मच गया। मगर उनमें मिट्टी के ढेर में से शव निकालने का साहस नहीं हुआ। यह घटना शक 1260, बैसाख बदी पंचमी (1, मर्इ 1338 र्इ.) की है।

कुछ दिन बीत गये और उनका मृत शरीर मिट्टी में मिल गया। केवल अस्थियाँ ही शेष रहीं। बात जब सन्त नामदेव को मालूम हुर्इ तो उन्होंने वहाँ जाकर मिट्टी निकालनी शुरू की और जब उन्हें हड्डियाँ मिलीं, तो प्रश्न उठा कि इनमें से चोखोबा की हड्डियाँ कौन-सी हैं। तब नामदेव ने एक-एक अस्थि को अपने कान से लगाना शुरू किया। जिस अस्थि से ‘विट्ठल-विट्ठल’ की ध्वनि आती, वह चोखेबा की कहकर वे उसे अलग रखने लगे। नामदेवजी ने उन अस्थियों को एकत्र किया और एक पालकी में रखकर जुलूस का आयोजन किया और भजन-पूजन के साथ वे उन्हें पंढरपुर ले आये। मंदिर के महाद्वार पर जमीन में उन अस्थियों को गाड़कर उन्होंने शक 1260 की बैसाख बदी 13 को उस स्थान पर समाधि बाँधी। आज भी वारकरी लोग चोखोबा की समाधि का दर्शन करने के बाद ही विट्ठलदेव का दर्शन करते है।
विश्व-स्तरीय संतमत सत्संग समिति (रजि.)